गौतमपुरा का प्रसिद्ध ‘हिंगोट संग्राम’: 30 से अधिक योद्धा घायल, ‘तुर्रा’ और ‘कलंगी’ दलों का ऐतिहासिक टकराव

इंदौर (एजेंसी)। मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के गौतमपुरा में मंगलवार शाम दीपावली के बाद आयोजित होने वाले पारंपरिक ‘हिंगोट युद्ध’ में इस वर्ष भी 30 से अधिक लोग चोटिल हो गए। यह संघर्ष हर साल दिवाली के अगले दिन गौतमपुरा और पास के रुनजी गांव के निवासियों के बीच लड़ा जाता है। क्षेत्रवासी इस युद्ध को साहस और सदियों पुरानी विरासत का प्रतीक मानते हैं।
बारूद भरे फल बनते हैं हथियार ‘हिंगोट’ एक जंगली फल है, जो आकार में लगभग आंवले जैसा होता है। इसे अंदर से खाली करके इसमें विस्फोटक (बारूद) भरा जाता है, जिससे यह जलने पर रॉकेटनुमा पटाखे में बदल जाता है। इस ‘युद्ध’ में, गौतमपुरा के ‘तुर्रा दल’ और रुनजी के ‘कलंगी दल’ के ‘योद्धा’ एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं।
मैदान में उमड़ी भीड़ ने देखा जोश और आग का नजारा मंगलवार शाम, इस रोमांचक और जोखिम भरी परंपरा को देखने के लिए मैदान में हजारों दर्शक जमा हुए। सिर पर कपड़ा बांधे और हाथ में धधकता हिंगोट लिए ‘योद्धा’ मैदान में उतरते हैं। चारों ओर आतिशबाजी जैसी अग्नि-लपटें दिखाई देती हैं, और भीड़ तालियां बजाकर खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाती है।
30 से ज्यादा लोग जख्मी, दो गंभीर ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. वंदना केसरी के अनुसार, करीब 35 लोग घायल हुए हैं। इनमें से दो की चोटें गंभीर हैं। एक व्यक्ति का हाथ टूट गया है, जबकि दूसरे की नाक पर गहरा घाव आया है। दोनों को देपालपुर के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है।
सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद हुई दुर्घटनाएं एसडीपीओ संघप्रिय सम्राट ने जानकारी दी कि दर्शकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मैदान के चारों ओर ऊंचे जालीदार बैरिकेड्स लगाए गए थे। मौके पर लगभग 200 पुलिसकर्मी और 100 प्रशासनिक अधिकारी तैनात थे। इसके अलावा, अग्निशमन वाहन और एंबुलेंस भी मौजूद थीं।
होलकर शासनकाल से चली आ रही है यह प्रथा स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह अनूठी परंपरा लगभग 200 साल पुरानी है। कहा जाता है कि होलकर काल में, स्थानीय सैनिक मुग़ल सेना से लड़ते समय हिंगोट में बारूद भरकर इसे हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे। उसी बहादुरी की याद में आज भी लोग यह अनोखा ‘हिंगोट युद्ध’ मनाते हैं, भले ही इसमें हर साल कई लोग घायल हो जाते हैं।
















