शारदीय नवरात्रि : मां शैलपुत्री की पूजा, व्रत और कथा

न्युज डेस्क (एजेंसी)। आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो गई है और यह पावन पर्व मां दुर्गा को समर्पित है। इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिनमें से पहला स्वरूप माता शैलपुत्री का है। ‘शैल’ का अर्थ है पर्वत, और चूंकि माता पार्वती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के बाद, माता शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों को शुभ फल मिलते हैं। कहा जाता है कि इस पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के दुखों का अंत होता है। आइए जानते हैं, माता शैलपुत्री की पूजा विधि, प्रिय भोग, मंत्र और व्रत कथा।
मां शैलपुत्री का स्वरूप
मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और दयालु है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है, जो उनकी शक्ति और अद्भुतता को दर्शाता है। उनका वाहन बैल है, जिस कारण उन्हें वृषभारूढ़ा भी कहते हैं। उनकी तपस्या का स्वरूप बहुत ही प्रेरणादायक है। वे सभी जीवों की रक्षक हैं और भक्तों के कष्टों को हरती हैं।
नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा और व्रत करने से विशेष कृपा मिलती है। मान्यता है कि माता शैलपुत्री भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। वे साधक के मूलाधार चक्र को जागृत करने में भी मदद करती हैं, जो स्थिरता, सुरक्षा और मानसिक शांति का केंद्र माना जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन की पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठना शुभ माना जाता है।
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करें।
मां शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और पूरे परिवार के साथ कलश की स्थापना करें।
इसके बाद, मां शैलपुत्री के ध्यान मंत्र का जाप करें।
‘ओम देवी शैलपुत्र्यै नमः, वंदे वाञ्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्, वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्, या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’
साथ ही, नवरात्रि व्रत का संकल्प भी लें।
मां शैलपुत्री की पूजा षोडशोपचार विधि से करें, जिसमें सभी दिशाओं, तीर्थों और नदियों का आह्वान किया जाता है।
माता को सफेद, पीले या लाल रंग के फूल और कुमकुम का तिलक चढ़ाएं।
धूप और पांच देसी घी के दीपक जलाएं।
इसके बाद, मां शैलपुत्री की आरती उतारें। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
आरती के बाद, दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। साथ ही, पूरे परिवार के साथ ‘जय माता दी’ के जयकारे लगाएं।
मां शैलपुत्री के प्रिय भोग
पूजा के बाद, मां शैलपुत्री को सफेद रंग की चीजें अर्पित की जाती हैं। सफेद रंग को शांति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। आप भोग में सफेद मिठाई, खीर, या सफेद लड्डू चढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, दूध और दही भी अर्पित कर सकते हैं।
मां शैलपुत्री का मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम्,
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:,
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
मां शैलपुत्री की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती, प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया। सती ने यज्ञ में जाने की इच्छा जताई, लेकिन शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण जाना उचित नहीं है। हालांकि, सती अपनी जिद पर अड़ी रहीं और शिव की अनुमति लेकर वहां पहुंच गईं।
यज्ञ में सती को देखकर उनके माता के अलावा किसी ने भी उनका सम्मान नहीं किया, और दक्ष ने शिव का अपमान किया। यह अपमान सती के लिए असहनीय हो गया। अपने पति का अपमान देखकर वे बहुत दुखी हुईं और स्वयं को यज्ञ की अग्नि में जला लिया। यह जानकर शिव क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया।
इसके बाद, सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इस जन्म में भी उन्होंने घोर तपस्या की और भगवान शिव से विवाह किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है।
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार, करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी, तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे, जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू, दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी, आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो, सगरे दुख तकलीफ मिटा दो।
घी का सुंदर दीप जला के, गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं, प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अम्बे, शिव मुख चंद्र चकोरी अम्बे।
मनोकामना पूर्ण कर दो, भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
जोर से बोलो जय माता दी, सारे बोले जय माता दी।