शारदीय नवरात्रि : महाअष्टमी पर महागौरी की पूजा और शुभ संयोग

न्युज डेस्क (एजेंसी)। शारदीय नवरात्रि का आठवाँ दिन महाअष्टमी या दुर्गा अष्टमी के रूप में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन, देवी दुर्गा के महागौरी स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह दिन न केवल मां की आराधना के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हवन और कन्या पूजन जैसे पवित्र अनुष्ठानों का भी केंद्र होता है।
इस साल शारदीय नवरात्रि सामान्य 9 दिनों के बजाय 10 दिनों की है, जो 22 सितंबर से शुरू होकर 1 अक्टूबर को समाप्त होगी। इस कारण भक्तों में अष्टमी की सही तिथि को लेकर कुछ असमंजस की स्थिति बन गई है।
दुर्गा अष्टमी (महाअष्टमी) की तिथि और महत्व
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि 29 सितंबर, सोमवार को शाम 4:31 बजे से शुरू होकर 30 सितंबर, मंगलवार को शाम 6:06 बजे समाप्त होगी।
उदया तिथि को आधार मानते हुए, इस वर्ष दुर्गा अष्टमी की पूजा 30 सितंबर, मंगलवार को की जाएगी। यह दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है और भक्तों के लिए मां का आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत लाभकारी अवसर होता है।
कन्या पूजन का समय और विधान
दुर्गा अष्टमी के दिन का एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान कन्या पूजन है। इस दिन श्रद्धालु कम से कम नौ कन्याओं को देवी का रूप मानकर आमंत्रित करते हैं।
कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त: प्रातः 10:40 बजे से 12:10 बजे तक
कन्याओं को खीर, हलवा और पूरी जैसे व्यंजन खिलाए जाते हैं।
उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया जाता है और उपहार या भेंट दी जाती है।
इस वर्ष कन्या पूजन 30 सितंबर को अष्टमी तिथि और 1 अक्टूबर को महानवमी तिथि दोनों दिन किया जाएगा।
महाअष्टमी पूजा विधि
मां महागौरी की पूजा निम्नलिखित तरीके से संपन्न करें:
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थल को साफ कर गंगाजल से शुद्ध करें।
मां महागौरी का गंगाजल से अभिषेक करें और उन्हें पूजा स्थल पर स्थापित करें।
माता को लाल चंदन, अक्षत, लाल फूल और लाल चुनरी अर्पित करें।
भोग में फल, खीर और विभिन्न प्रकार की मिठाइयां चढ़ाएं।
दीपक और धूपबत्ती जलाकर दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
इसके बाद, हवन करें और पान के पत्ते पर कपूर रखकर मां की आरती करें।
अंत में, जाने-अनजाने में हुई किसी भी भूल के लिए मां से क्षमा याचना करें।
नवरात्रि व्रत का पारण
जो भक्त अष्टमी के दिन व्रत का पारण (समापन) करते हैं, वे हवन और कन्या पूजन संपन्न होने के बाद शाम को मां दुर्गा की आरती करके अपना उपवास समाप्त कर सकते हैं। हालांकि, आमतौर पर नवमी और विजयदशमी (दशहरा) के दिन व्रत का पारण करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।










