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शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप एक्शन मोड में, सत्ता संभालते ही BRICS देशों को दे डाली चेतावनी

अमेरिकी  (एजेंसी)। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप एक्शन मोड में हैं। ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन की ओर से लिए गए फैसलों को पलटने के लिए 78 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के इन सभी फैसलों में कई बातें बेहद अहम हैं, जिसकी चर्चा हर तरफ हो रही है। इस बीच बड़ी बात यह है कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने ब्रिक्स देशों को भी चेतावनी दे डाली है।  

अमेरिका विरोधी नीतियों के लिए भुगतने होंगे परिणाम

राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्रिक्स देशों के समूह को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर ब्रिक्स अमेरिका विरोधी नीतियां लाता है तो उन्हें परिणाम भुगतने होंगे और वो खुश नहीं रह पाएंगे। ट्रंप ने कहा कि इन देशों ने अमेरिका के हितों के विपरित कई चीजें करने की कोशिश की है, अगर ये देश आगे भी ऐसा करते रहते हैं तो फिर उनके साथ जो होगा उसके बाद वो देश खुश नहीं रह पाएंगे। ब्रिक्स देशों में भारत भी शामिल है। 

100 फीसदी टैरिफ लगाने की कही बात

ट्रंप ने धमकी देते हुए कहा कि अगर ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने का प्रयास किया तो वो उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगा देंगे। उनकी यह धमकी ब्रिक्स गंठबंधन में शामिल देशों के लिए है जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। इसके साथ ही तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए आवेदन किया है। 

पुतिन ने कही थी बड़ी बात

बता दें कि, पिछले साल अक्टूबर में हुए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका पर डॉलर को हथियार बनाने का आरोप लगाते हुए इसे बड़ी गलती बताया था। उस समय पुतिन ने कहा था कि यह हम नहीं हैं जो डॉलर का उपयोग करने से इनकार कर रहे हैं। लेकिन, अगर वो हमें काम नहीं करने दे रहे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? हमें विकल्प खोजने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व

वैसे देखा जाए तो अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार में अब तक सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा है और अतीत में आई चुनौतियों के बावजूद अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने में सफल रही है। ब्रिक्स में शामिल सदस्यों और अन्य विकासशील देशों का कहना है कि वो वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अमेरिका के प्रभुत्व से तंग आ चुके हैं। ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता को कम करते हुए अपने आर्थिक हितों को बेहतर तरीके से साधना चाहते हैं।

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