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वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक, कभी तू छलिया लगता है , कभी दीवाना लगता है , कभी अनाडी लगता है , कभी आवारा लगता है , तू जो अच्छा समझे , ये तुझपे छोड़ा है ।

1991 में आई फ़िल्म “पत्थर के फूल ” में एसपी बालसुब्रामण्यम व लता मंगेशकर द्वारा गाना यह गान आज अचानक भूमाफिया बन्धुओ और उपपंजीयक के गठजोड़ के सहारे हो रहे भ्रष्टाचार भूमाफिया बन्धुओ के ब्यान , शपथ पत्र और पिता के बार बार बदलते नामो को देख अनायास जुंबा पे आ गया । गाने को बुदबुदा ही रहा था कि गोबरहिंन टुरी कहती है तोर समाचार पढ़ पढ़ के लागत है एखर तो बने पैरोडी बनहि महराज सुन पैरोडी ल –
कभी तुम मामा भांजे लगते हो ,
कभी तुम भाई भाई दिखते हो ,
रिश्ते में ऐसा क्या राज छुपा रखा है ,
कभी भू माफिया लगते हो ,
कभी सूदखोर दिखते हो,
कभी स्टाम्प ड्यूटी चोर बनते हो ,
तू जो अच्छा समझे ,
ये तुझपे छोड़ा है।
गोबरहिंन टुरी की पैरोडी को सुन दिमाग की गुल बत्ती जल उठी जो बात जिसे हम अनपढ़ और पिछड़ी औरत समझते है उसे समझ आ गई और गड़बड़ झाले को समझ पैरोडी बना ली , वो बाते लाखो रुपये तनख्वाह पाने वाले लिखे पढ़े डिग्री धारी अफसरान , अधिकारी और कर्मचारियों को क्यो समझ नही आ पा रही समझ से परे है । आखिर शासन के खजाने को करोड़ो रूपये का चूना किसकी शह पर लगाया जा रहा ? क्यों नही अफसरान की आंखे खुल रही जो तनख्वाह तो सरकार की पाते है किंतु चाकरी भूमाफिया बन्धुओ की करते दिखते है , जय हो ऐसे अफसरान की ईमानदार की । जिस ढंग से सरकार के खजाने को लगातार बेखौफ हो मिलिभगत से लाखो करोड़ो का चुना लगाया जा रहा है उस हिसाब से भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का नाम दे देना चाहिए ।
और अंत में:-
कैसे हो पाएगी अच्छे इंसान की पहचान,
जब दोनों ही नकली हो गये है आँसू और मुस्कान ।
#जय_हो 2अप्रैल 2023 कवर्धा (कबीरधाम)छत्तीसगढ़

चन्द्र शेखर शर्मा (पत्रकार)9425522015

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