फिल्म ‘धुरंधर’ में दिखाए गए पाक के ल्यारी की क्या है असली कहानी, कौन थे रहमान डकैत और एसपी असलम?

मुंबई (एजेंसी)। हाल ही में रिलीज हुई जासूसी थ्रिलर फिल्म ‘धुरंधर’ (जिसमें रणवीर सिंह, संजय दत्त और अक्षय खन्ना जैसे कलाकार हैं) ने एक बार फिर कराची के कुख्यात ल्यारी इलाके और उसकी गैंगवार की भयावह कहानी को सुर्खियों में ला दिया है। यह फिल्म काल्पनिक नहीं है; बल्कि यह 2000 के दशक की वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, जब यह इलाका खून-खराबे का मैदान बन गया था।
‘धुरंधर’ में, अक्षय खन्ना ने खूंखार गैंगस्टर रहमान डकैत का किरदार निभाया है, जबकि संजय दत्त ने सख्त पुलिस अधिकारी चौधरी असलम की भूमिका निभाई है। ल्यारी में ड्रग्स, रंगदारी और हथियारों के कारोबार का वर्चस्व था, जिसे अक्सर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के राजनीतिक समर्थन से संचालित किया जाता था, जिसने इसे एक ‘नो-गो जोन’ (प्रवेश-निषिद्ध क्षेत्र) बना दिया था।
ल्यारी का इतिहास: फुटबॉल से अपराध के गढ़ तक
ल्यारी कराची का सबसे पुराना और सघन आबादी वाला इलाका है, जहाँ बलोच, कच्छी और सिंधी समुदाय सदियों से निवास करते हैं। 19वीं सदी में यह एक श्रमिक बस्ती थी। 1960 और 70 के दशक में यहाँ छोटे स्तर पर चरस (हशीश) का व्यापार पनपा। हालांकि, 1979-89 में हुए अफगानिस्तान के सोवियत युद्ध के बाद, हथियारों और ड्रग्स की भारी आमद हुई, जिसने गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं को आपराधिक गिरोहों की ओर धकेला।
ल्यारी को कभी ‘मिनी ब्राजील’ कहा जाता था, क्योंकि यहाँ बड़ी संख्या में फुटबॉल क्लब थे और हुसैन शाह जैसे ओलिंपिक मुक्केबाज यहीं से निकले थे। लेकिन, 1980 के दशक के बाद जातीय और राजनीतिक संघर्ष शुरू हो गया। पीपीपी यहाँ मजबूत थी, लेकिन वोटों को नियंत्रित करने के लिए पार्टियों ने गिरोहों से हाथ मिला लिया। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) और पीपीपी के बीच के इस टकराव ने हिंसा को बढ़ावा दिया।
गैंगवार की शुरुआत: हाजी लालू से रहमान डकैत तक
ल्यारी की आधुनिक गैंगवार की जड़ें 1960 के दशक के हशीश व्यापार में हैं। 1990 के दशक में, सरदार अब्दुल रहमान बलोच, जिन्हें रहमान डकैत के नाम से जाना गया, सबसे प्रभावशाली अपराधी के रूप में उभरे। हाजी लालू गैंग के पतन के बाद, 2001 में रहमान ने इलाके पर कब्ज़ा कर लिया।
रहमान डकैत (1975-2009): एक छोटे-मोटे अपराधी परिवार में जन्मे रहमान ने किशोरावस्था में ही अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, वह क्रूरता के लिए कुख्यात थे।
वह ड्रग्स, जुआ और रंगदारी से लाखों कमाते थे, लेकिन साथ ही उन्होंने क्लिनिक, मदरसों और फुटबॉल टूर्नामेंट को भी फंड किया, जिससे स्थानीय लोगों के बीच उनका एक अलग प्रभाव बन गया।
2008 में, पीपीपी ने उन्हें ‘पीपुल्स अमन कमिटी’ (पीएसी) का प्रमुख बना दिया। यह समिति आधिकारिक तौर पर शांति के लिए थी, लेकिन वास्तव में यह उनके गिरोह के लिए एक राजनीतिक सुरक्षा कवच थी।
रहमान की मुख्य दुश्मनी अरशद पप्पू से थी, जो एमक्यूएम समर्थित माना जाता था। 2003 में अरशद ने रहमान के चचेरे भाई उजैर बलोच के पिता की हत्या कर दी, जिसके बाद दोनों गिरोहों के बीच खूनी संघर्ष छिड़ गया।
फिल्म में अक्षय खन्ना का चरित्र, एक आकर्षक लेकिन खतरनाक अपराधी के रूप में, रहमान की वास्तविक छवि को दर्शाता है।
एसपी चौधरी असलम: ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ और उनकी अग्नि परीक्षा
चौधरी असलम खान (1963-2014) पाकिस्तान के सबसे विवादास्पद और निडर पुलिस अधिकारियों में से एक थे। सिंध पुलिस में शामिल होने के बाद, उन्हें ‘पाकिस्तान का डर्टी हैरी’ कहा जाने लगा। वह क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) के प्रमुख और ल्यारी टास्क फोर्स के मुखिया थे।
असलम ने गैंग्स और तालिबान के खिलाफ बेरहम कार्रवाई की।
2009 में, उन्होंने रहमान डकैत को एक ‘एनकाउंटर’ में मार गिराया। रहमान की पत्नी ने इसे फर्जी एनकाउंटर बताया, जिसके बाद सिंध हाईकोर्ट ने असलम पर प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने का आदेश दिया।
2012 के ऑपरेशन ल्यारी में असलम के नेतृत्व में उजैर बलोच के गिरोह पर हमला किया गया, जिसमें कई पुलिसकर्मी शहीद हुए।
आतंकवादी समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से उन्हें लगातार धमकियाँ मिलती थीं। 9 जनवरी 2014 को ल्यारी एक्सप्रेसवे पर हुए एक आत्मघाती बम हमले में उनकी मृत्यु हो गई।
फिल्म में संजय दत्त का चरित्र, एक सिगरेट पीने वाले और निडर ‘जिन्न’ के रूप में, असलम की वास्तविक छवि से प्रेरित है, हालाँकि उनकी पत्नी ने फिल्म के चित्रण पर आपत्ति जताई है।
गैंगवार का परिणाम: खूनी संघर्ष और राजनीतिक हस्तक्षेप
रहमान की मौत के बाद, उसके चचेरे भाई उजैर बलोच ने गिरोह की कमान संभाली। हिंसा अपने चरम पर पहुँच गई। 2013 में, उजैर के गिरोह ने अरशद पप्पू का अपहरण कर उसका सिर काट दिया, और प्रतिद्वंद्वी गिरोह ने उसके सिर से फुटबॉल खेली। 2004 से 2013 के बीच, इस गैंगवार में 800 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। पीपीपी और एमक्यूएम जैसी राजनीतिक पार्टियों ने वोट बैंक के लिए इन गिरोहों का इस्तेमाल किया, जिससे हिंसा को और हवा मिली।
आज, ल्यारी में शांति का माहौल बताया जाता है, जहाँ फुटबॉल क्लब फिर से सक्रिय हो गए हैं। कहा जाता है कि उजैर बलोच वर्तमान में जेल में अपनी सज़ा काट रहा है। हालाँकि, इस खूनी दौर के घाव अभी भी बाकी हैं।
















