आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग
दिनांक – 13 नवम्बर 2023
दिन – सोमवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – कार्तिक
पक्ष – कृष्ण
तिथि – अमावस्या दोपहर 02:56 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
नक्षत्र – विशाखा 14 नवम्बर प्रातः 03:23 तक
योग – सौभाग्य शाम 03:23 तक तत्पश्चात शोभन
राहु काल – सुबह 08:15 से 09:33 तक
सूर्योदय – 06:51
सूर्यास्त – 05:56
दिशा शूल – पूर्व दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:08 से 06:00 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 11:58 से 12:50 तक
व्रत पर्व विवरण – कार्तिक अमावस्या, दर्श अमावस्या, बलि-पूजा, अन्नकूट, गौक्रीड़ा, गोवर्धन पूजा, सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से दोपहर 02-56 तक)
विशेष – अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खानाज और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
सोमवती अमावस्या : 13 नवम्बर 2023
(पूण्य काल : 13 नवम्बर सूर्योदय से दोपहर 02:56 तक)
जिनको पैसो की कमजोरी है वह तुलसी माता की 108 प्रदिक्षणा करें । और श्री हरि…, श्री हरि…, श्री हरि…, मंत्र जप करें । ‘श्री’ माना सम्पदा, ‘हरि’ माना भगवान की दया पाना । तो गरीबी चली जायेगी ।
इस दिन भी मौन रहकर स्नान करने से हजार गौदान का फल होता है ।
इस दिन पीपल और भगवान विष्णु का पूजन तथा उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है । 108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के वृक्ष को कच्चा सूत लपेटते हुए की जाती है । प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक रखे जाते हैं । बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मणों या ब्राह्मणियों में वितरित कर दिये जाते हैं । ऐसा करने से संतान चिरंजीवी होती है ।
सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है ।
पटाखों से जलने पर
पटाखों से जलने पर जले हुए स्थान पर कच्चे आलू के पतले पतले चिप्स काट कर रख दें या आलू का रस लगा दें । और कुछ ना लगाये । इससे १-२ घंटे में आराम हो जायेगा ।
नूतन वर्ष (गुजरात संबत्सर) : 14 नवम्बर 2023
‘महाभारत में भगवान व्यासजी कहते हैं :
‘हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है, उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में व्यतीत होता है ।
दीपावली के दिन, नूतन वर्ष के दिन मंगलमय चीजों का दर्शन करना भी शुभ माना गया है, पुण्य-प्रदायक माना गया है । जैसे :
उत्तम ब्राह्मण, तीर्थ, वैष्णव, देव-प्रतिमा, सूर्यदेव, सती स्त्री, संन्यासी, यति, ब्रह्मचारी, गौ, अग्नि, गुरु, गजराज, सिंह, श्वेत अश्व, शुक, कोकिल, खंजरीट (खंजन), हंस, मोर, नीलकंठ, शंख पक्षी, बछड़ेसहित गाय, पीपल वृक्ष, पति-पुत्रवाली नारी, तीर्थयात्री, दीप क, सुवर्ण, मणि, मोती, हीरा, माणिक्य, तुलसी, श्वेत पुष्प, फल, श्वेत धान्य, घी, दही, शहद, भरा हुआ घड़ा, लावा, दर्पण, जल, श्वेत पुष्पों की माला, गोरोचन, कपूर, चाँदी, तालाब, फूलों से भरी हुई वाटिका, शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा, चंदन, कस्तूरी, कुंकुम, पताका, अक्षयवट (प्रयाग तथा गया स्थित वटवृक्ष), देववृक्ष (गूगल), देवालय, देवसंबंधी जलाशय, देवता के आश्रित भक्त, देववट, सुगंधित वायु, शंख, दुंदुभि, सीपी, मूँगा, स्फटिक मणि, कुश की जड, गंगाजी की मिट्टी, कुश, ताँबा, पुराण की पुस्तक, शुद्ध और बीजमंत्रसहित भगवान विष्णु का यंत्र, चिकनी दूब, रत्न, तपस्वी, सिद्ध मंत्र, समुद्र, कृष्णसार (काला) मृग, यज्ञ, महान उत्सव, गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोधूलि, गौशाला, गोखुर, पकी हुई खेती से भरा खेत, सुंदर (सदाचारी) पद्मिनी, सुंदर वेष, वस्त्र एवं दिव्य आभूषणों से विभूषित सौभाग्यवती स्त्री, क्षेमकरी, गंध, दूर्वा, चावल और अक्षत (अखंड चावल), सिद्धान्न (पकाया हुआ अन्न) और उत्तम अन्न- इन सबके दर्शन से पुण्यलाभ होता है ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्याय : ७६ एवं ७८)
लेकिन जिनके हृदय में परमात्मा प्रकट हुए हैं, ऐसे साक्षात् कोई लीलाशाहजी बापू जैसे, नरसिंह मेहता जैसे संत अगर मिल जायें तो समझ लेना चाहिए कि भगवान की हम पर अति-अति विशेष, महाविशेष कृपा है ।