ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग

दिनांक – 24 नवम्बर 2023
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत् – 2080
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – कार्तिक
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वादशी शाम 07:07 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
नक्षत्र – रेवती शाम 04:06 तक तत्पश्चात अश्विनी
योग – सिद्धि सुबह 09:05 तक तत्पश्चात व्यतिपात
राहु काल – सुबह 11:04 से 12:26 तक
सूर्योदय – 06:59
सूर्यास्त – 05:54
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:14 से 06:06 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:00 से 12:53 तक

व्रत पर्व विवरण – व्यतिपात योग, प्रदोष व्रत, तुलसी विवाह प्रारम्भ, गुरु तेग बहादुरजी शहीदी दिवस
विशेष – द्वादशी को पूतिका (पोई) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

व्यतिपात योग – 24 नवम्बर

समय अवधि : 24 नवम्बर सुबह 09:05 से 25 नवम्बर प्रातः 06:24 तक

व्यतिपात योग में किया हुआ जप, तप, मौन, दान व ध्यान का फल 1 लाख गुना होता है । – वराह पुराण

प्रदोष व्रत – 24 नवम्बर 2023

जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है उसी दिन प्रदोष का व्रत किया जाता है । प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारम्भ हो जाता है । जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष साथ-साथ होते हैं, वह समय शिव पूजा व गुरु पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ होता है ।

तुलसी विवाह प्रारम्भ : 24 नवम्बर 2023

तुलसी विवाह हिन्दु देवता विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के साथ तुलसी के पौधे का आनुष्ठानिक विवाह है । यह अनुष्ठान 24 नवम्बर से शुरू होगी 27 नवम्बर को समाप्त होगा ।

शीत ऋतु में विशेष तौर पर होनेवाला कफ रोग

कफ प्रकृति वाले लोगों को मंदाग्नि होने से कफ होता है । आहार में मधुर, नमकीन, चिकनाई युक्त, गुरु व अधिक मात्रा में लिया गया आहार कफ उतपन्न करता है ।

कफ का रोगी तीखा, कड़वा व कसैले रस अधिक लें । मिर्च, काली मिर्च, हींग, लहसुन, तुलसी, पीपरामूल, अदरक, लौंग आदि का सेवन विशेष रूप से कर सकते हैं ।

आहार रुक्ष, लघु, अल्प व उष्ण गुणयुक्त लें । जिस में बाजरा, बैगन, सहजन, सुआ की भाजी, मेथी, हल्दी, राई, अजवायन, कुलथी, चने, तिल का तेल, मूँग, विना छिलके के भुने हुए चने का सेवन करें । उबालने पर आधा शेष रहे पानी और अनुकूल पड़े तो सौंठ के टुकड़े डाल कर उबला हुआ पानी पियें । हो सके तो पानी गर्म-गर्म ही पियें । छाती, गले व सिर पर सेंक करें । नींद अधिक न लें ।

औषधि : भोजन के बाद हिंगादी हरड़ चूर्ण या संत कृपा चूर्ण का सेवन करें अथवा संत कृपा चूर्ण दिन में 2 बार शहद के साथ लें । गजकरणी करें । सूर्यभेदी प्राणायाम करें ।

प्रातः गौमूत्र अथवा गौझरण अर्क का सेवन करें ।

परिक्रमा क्यों ?

भगवत्प्राप्त संत-महापुरुष के व्यासपीठ या निवास स्थान की, उनके द्वारा शक्तिपात किये हुए वट या पीपल वृक्ष की, महापुरुषों के समाधि स्थल अथवा किसी देव प्रतिमा की किसी कामना या संकल्पपूर्ति हेतु जो परिक्रमा (प्रदक्षिणा) की जाती है उसके पीछे अत्यंत सूक्ष्म रहस्य छिपे हैं । इसके द्वारा मानवी मन की श्रद्धा समर्पण की भावना का सदुपयोग करते हुए उसे अत्यंत प्रभावशाली ‘आभा विज्ञान’ का लाभ दिलाने की सुंदर व्यवस्था हमारी संस्कृति में है ।

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