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क्यों नहीं पहने जाने चाहिए मृत व्यक्ति के वस्त्र

पुनर्जन्म का विधान

हिन्दू धर्म के अंतर्गत पुनर्जन्म का विधान है… यह माना जाता है जब कोई आत्मा अपना शरीर त्याग देती है तब वह नए शरीर में नया जन्म लेती है, लेकिन इसके लिए सबसे पहली शर्त है उसका शरीर से मुक्त होना। अगर वह उस शरीर से मुक्त ही ना हो पाए तो? अगर वह मृत्यु के बाद भी अपने परिवार से मोह का त्याग ना कर पाए तो? अगर किसी एक डोर से बंधकर वह अपने परिवार के बीच ही रह जाए तो?

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं “मृत्यु…. यह एक बेहद धीमी प्रक्रिया है, जिस तरह जन्म एक क्षण में नहीं होता, गर्भस्थ शिशु को इस दुनिया में आने के लिए एक लंबा इंतजार करना पड़ता है… कुछ ऐसे ही मृत्यु के साथ भी है। मेडिकली डेड व्यक्ति भी उसी क्षण नहीं अपने प्राण त्याग देता, बल्कि उसके शरीर में अभी भी कुछ सांसें शेष रह जाती हैं… वह शायद अभी भी जन्म और मरण के चक्र के बीच एक जंग लड़ रहा होता है। वह शायद अभी भी मौत को हराने की कोशिश कर रहा होता है.. लेकिन जब वह जीवन की इस जंग में हार जाता है, जब एक बार आत्मा शरीर को त्याग देती है, तब परिवार के लोगों को उस शरीर से जुड़े वस्त्रों और अन्य नजदीकी चीजों को या तो जला देना चाहिए या फिर उन्हें दान दे देना चाहिए………….

क्या कहते हैं सद्गुरु

क्या कहते हैं सद्गुरु

उनका उपयोग खुद बिल्कुल नहीं करना चाहिए… क्योंकि यह आत्मा को कभी मुक्त नहीं होने देता.. आत्मा उन वस्त्रों के उपयोग के कारण यह समझ नहीं पाती कि उसे अब इस धरती से चले जाना है। वह मृत्युलोक को छोड़कर जाना चाहती है लेकिन एक बंधन में बंधकर रह जाती है… वह अपने कपड़ों की गंध से अपने परिवार और अपने घर को पहचानती है। इसलिए जब किसी योगी को अपनी मृत्यु का अंदेशा लग जाता है तब वह अपनी पूरी कुटिया को ही जलाकर भस्म कर देता है… क्योंकि वह ये नहीं चाहता कि उसके शरीर का एक भी अंश या उसके द्वारा प्रयोग की हुई कोई भी वस्तु वहां मौजूद रहे… क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वह कभी जीवन-मरण के चक्र से मुक्त नहीं हो पाएगा।”

जन्म और मृत्यु

जन्म और मृत्यु

जन्म और मृत्यु… ये एक शाश्वत सत्य है, जिसने जन्म लिया है उसका अंत तय है और जिसका अंत हुआ है उसे इस धरती पर दोबारा जन्म भी लेना ही है। मान्यताओं के अनुसार मृत्यु हो जाने के बाद भी आत्मा कहीं ना कहीं अपने परिवार के बीच रहती है… वह सब देखती है लेकिन किसी से कुछ कह नहीं सकती… वह सब सुनती है और महसूस करती है…. जब तक शरीर को अग्नि के हवाले ना कर दिया जाए, जब तक शरीर का दाह-संस्कार ना हो जाए तब तक वह आत्मा अपने शरीर को वापस पाने की पूरी कोशिश करती है… वह अपने शरीर के बंधन से मुक्त नहीं हो पाती।

आत्मा का शरीर से जुड़ाव

 आत्मा का शरीर से जुड़ाव

आत्मा अपने शरीर से जुड़ाव तो रखती है लेकिन साथ ही साथ उसे अपनी कुछ वस्तुओं से भी बहुत प्रेम होता है… जैसे कपड़े, पेन, कोई महंगा सामान… कोई ऐसी चीज जो उसके शरीर के हमेशा निकट रहती हो। अगर ये सामान परिवार के पास रहेगा और परिवार के लोग इन सभी सामानों का उपयोग भी करेंगे तो कहीं ना कहीं यह उस आत्मा की मुक्ति की राह में बाधा बनता है। इसलिए यह माना जाता है कि जब भी कोई व्यक्ति अपने प्राण त्याग देता है तब उसके द्वारा उपयोग किए हुए वस्त्रों को कभी नहीं पहनना चाहिए। शरीर त्यागने के बाद वह आत्मा केवल एक ऊर्जा बनकर रहती है, जो सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक भी… उस आत्मा की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाने के लिए उससे जुड़ी वस्तुओं को किसी निर्धन और असहाय को दान देना ही एक बेहतर विकल्प है।

प्रैक्टिकल विचारधारा

प्रैक्टिकल विचारधारा

हालांकि इस बाबत एक अन्य विचारधारा भी है जो कुछ तक आपको प्रैक्टिकल लग सकती है। दरअसल मृत्यु से कुछ समय पहले से ही व्यक्ति की इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है। इतना ही नहीं अगर किसी व्यक्ति का देहांत किसी बीमारी की वजह से हुआ है तब भी यह बहुत हद तक संभव है कि उन वस्त्रों में कोई बैक्टीरिया या माइक्रो ऑरगैनिज्म रह गए हों, जिन्हें नग्न आंखों से देख पाना लगभग असंभव है। जो व्यक्ति उन कपड़ों को धारण करता है मुमकिन है ये बैक्टीरिया उसके शरीर तक पहुंच जाएं इसलिए काफी हद तक सही यही है कि मृत व्यक्ति के कपड़ों का पुन: उपयोग ना किया जाए।

मृत व्यक्ति का सामान

मृत व्यक्ति का सामान

जब हमारा कोई प्रिय अपने प्राण त्यागता है तब उसके साथ जुड़े रहने के लिए हमारे पास केवल उसकी यादें शेष बच जाती हैं…जिसमें कुछ उनका सामान भी है। अगर हम मृत व्यक्ति का सामान अपने पास रखते हैं और उसका उपयोग भी करते हैं तब यह हमें मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है, हमें उस दुखद क्षण को भूलने नहीं देता, अपने आप को जीवन की गति के साथ आगे बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि उन वस्तुओं को दान कर दिया जाए जो आपको अतीत की यादों में बांधकर रख सकती है।

गरीब को दान में देना

 गरीब को दान में देना

आप हर स्थिति में, हर किसी व्यक्ति से व्यवहारिक होने की अपेक्षा नहीं कर सकते…. मेरे एक परिचित हैं, वे जब भी किसी शुभ कार्य के लिए जाते हैं अपने पिता का कोट पहन लेते हैं। उन्होंने अपने पिता के अधिकांश कपड़े तो गरीबों में बांट दिए हैं, लेकिन एक निशानी के तौर पर वह कोट उन्होंने अपने पास सहेजकर रखा है। अगर उनसे कभी भी ये कहा जाए कि इस कोट को किसी गरीब को दान में दे देना चहिए तो वे काफी भावुक हो जाते हैं।

मृत्यु के बाद का जीवन

मृत्यु के बाद का जीवन

अगर आप इस बात में विश्वास करते हैं कि मृत्यु के बाद भी जीवन है…. मृत्यु अंत नहीं बल्कि उस आत्मा की एक नई शुरुआत है तब आपको यही कोशिश करनी चाहिए कि सिर्फ उन कपड़ों या अन्य किसी सामान की वजह से, मुक्त हो चुकी आत्मा की यात्रा को बाधित ना करें। आत्मा स्वच्छंद है, शायद वह एक शरीर की तलाश में जुटने जा रही है… उसे रोकें नहीं, आगे बढ़ने दें, एक नया आगाज करने दें।

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