ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग 

हिन्दू पंचांग 

दिनांक – 22 नवम्बर 2023
दिन – बुधवार
विक्रम संवत् – 2080
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – कार्तिक
पक्ष – शुक्ल
तिथि – दशमी रात्रि 11:03 तक तत्पश्चात एकादशी
नक्षत्र – पूर्वभाद्रपद रात्रि 08:01 तक तत्पश्चात उत्तरभाद्रपद
योग – हर्षण शाम 06:37 तक तत्पश्चात वज्र
राहु काल – दोपहर 12:26 से 01:48 तक
सूर्योदय – 06:57
सूर्यास्त – 05:54
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:13 से 06:05 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:00 से 12:52 तक

व्रत पर्व विवरण –
विशेष – दशमी को कलंबी शाक त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

देवउठी-प्रबोधिनी एकादशी – 23 नवम्बर 2023

एकादशी 22 नवम्बर रात्रि 11:03 से 23 नवम्बर रात्रि 09:01 तक
व्रत उपवास 23 नवम्बर को रखा जायेगा ।

देवउठी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को इस मंत्र से उठाना चाहिए
उतिष्ठ-उतिष्ठ गोविन्द, उतिष्ठ गरुड़ध्वज l
उतिष्ठ कमलकांत, त्रैलोक्यं मंगलम कुरु l l

इस एकादशी के दिन संध्या के समय कपूर से भगवान की आरती करने से आजीवन अकाल-मृत्यु से रक्षा होती है, एक्सीडेंट, आदि उत्पातों से रक्षा होती है l

महापातकों का नाशक भीष्मपंचक व्रत : 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023 तक

कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत’ कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।

इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए :

सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।
भीष्मायैतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।’
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)

अर्घ्य के जल में थोड़ा-सा कुमकुम, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ़ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ…’ – ऐसी प्रार्थना करें ।

एकादशी व्रत के लाभ

एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है ।

जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।

जो पुण्य गौ-दान, सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।

एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं । इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।

धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।

कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।

परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है । पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ । भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।

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